निंदा रस
निंदा रस
"जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि "ये कहावत तो आप सबने सुनी ही होगी| ढूँढने वाला हर चीज में आनंद ढूँढ ही लेता है |यह रस भी कमबख़्त हर चीज़ में भरा है, बस लेने वाला होना चाहिए |चलिए आज बात कर लेते हैं, एक जाने -माने रस की ~"निंदा रस "|इसके तो प्रशंसकों से दुनिया भरी हुई है |जहाँ भी लोग बात करते दिखते हैं, अक्सर निंदा रस का स्वाद ले रहे होते हैं |
निंदा रस |
आखिर इतने स्वादिष्ट रस को छोड़ भी तो नहीं सकते |जब कोई तीसरा व्यक्ति दो लोगों को निंदा रस लेते हुए देखता है तो उसकी भी लार टपकने लगती है, जीभ मचलने लगती है तथा वह भी लपक कर उनके रस को साझा करने पहुँच जाता है |इसी प्रकार लोग झुँड बना कर निंदा का रसपान करते हैं |ऐसा हो भी क्यों न? हमने बचपन से ही सीखा है ~मिल-जुल कर काम करना |सहयोग ही तो सामाजिक संबंधों का आधार है |
अब समस्या यह है कि कुछ लोगों को निंदा का रसपान करना आता ही नहीं |बेचारे! अब वे उस झुँड की निंदा का शिकार हो जाते हैं ~"कितने मूर्ख लोग हैं! निंदा रस से तो बदहज़मी भी नहीं होती, जितना चाहे ग्रहण करो |पर ये फिर भी उपवास की जिद पर अड़े हुए हैं |"
इस प्रकार की बातें उनके निंदा रस में चार-चाँद लगाकर उसे और भी स्वादिष्ट बना देती है |दोस्तों! स्वाद की भी एक सीमा होनी चाहिए, अन्यथा मधुमेह होने की संभावना है |जरा ध्यान से!
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