रात के राजा रात के राजा रात के राजा का,करते हैं बखान सिंहासन पर चढ बैठा, प्राणी ये महान फलते और फूलते ही,जा रहे हैं आज इंसानों की दुनिया में,छाया इनका राज अच्छी गहरी नींद में,ये दें थपथपा रात-दिन इनका ही,रहता दबदबा पहले तो बादल से,झूमकर ये आएं दिखते नहीं आँखों में,धूल झौंक जाएं और दोबारा पूरी,तैयारी संग आएं जो भी इनको मिले,वही अंग खा जाएं कानों के पास आकर,मीठी धुन बजाएं ऐसे ही मीठे रक्त को ये पचाएं भले शांत इंसान को,ये नाच नचाएं जाते-जाते दर्द और खुजली मचा जाएं बिजली के जाते ही,सबका दिल दहलाएं काट-काट कर माँस को,मॉसकीटो कहलाएं इनको तो काटने में,आती नहीं लाज करना ही होगा हमें,कुछ तो इलाज कहीं न होने दो,पानी की बंदगी दूर करो अपने,इलाके की गंदगी ऐसा करने में,बिल्कुल न करना देर तुरंत ही हटाओ,कूड़े के सब ढेर चाहते हो स्वास्थ्य,तो बात ये मानना डेंगू और मलेरिया,झेलना होगा वरना This poem is also available on my utube channel: Click here My another blogs: Hopes in Life Worldwide Haryanvi